Friday, March 16, 2007

committee

one of the old ones I'd written for some kavita competition at college. Its an old style kavita, the ones we hear at kavi sammelans (AABBCCDD). sounds better than it reads :-D

अब्दुल मिया कि मुर्गी के अंडे को रामू ने तोड़ दिया,
ग़ुस्से में आ, मिया ने रामू का सिर फोड़ दिया.
यह देख मोहल्ले में छिडी लदी,
पीटे गए दरजी लेखक :-) , या हो नाइ,
फैले दंगे शहर-शहर हर गली,
मार पीट के जनता ही आख़िर चढ़ी बलि

बात पहुची आख़िर में दिल्ली,
ठिठकी सर्कार मानो भीगी बिल्ली.
विरोधी दल ने आरोप लगाए
कहा "सरकार को तुरंत नीचे ले आयें"
लोकसभा में मचा घाना रोष,
विरोधिया का तर्क था कि केंद्र का दोष

सभे में लगे आरोप-प्रत्यारोप,
घेर लिया पम को मानो गोपियाँ और गोप
तोड़े गए मिकेस और मचाया हुड-दंग
आख़िर जीते पहलवान और कुच्छ एक भुजंग
नेताओं ने कहा "हड़ताल पर जायेंगे"
"बेबस तो है ही जनता, इनको बदहाल कराएँगे"

त ओबंद हुए नगर गाँव, गली मोहल्ले,
हुए कुच्छ दंगे, चली गोलियां खुल्लम खुल्ले
मिल गए सरे दुच्ष्ट कमीने, पाजी,
काटे गए दलित, पण्डे और काजी.
फालतू पत्रकारों का भी काम मिल गया,
विरोधी दल को भी कुच्छ आराम मिल गया

केंद्र पे टूट पडी यह नयी मुसीबत,
सिर पर आन् पडी एक और आफत

तो फिर चली पुराणी चाल और कि कमेटी सेतुप
लागे नाका-बंदी, बुलाये बच्कुप
केंद्र ने लुटाए रुपये सैकडो करोड़,
कमेटी ने भी कि मेहनत जी तोड़
आख़िर लगाए ७ महिने, २६ दिन
पेश कि गयी रिपोर्ट एक एक पन्ना गिन

रिपोर्ट के ५६० पन्नो का एक वाक्य में समावेश है,
८ महिनो कि खोज का निचोड़ यहाँ पेश है

"जनवरी में हुए जो दंगे, सौ बातों कि बात है -
इन दंगो के पीछे विदेशी ताक्तो का हाथ है"

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